आज का शब्द: मरघट और गोपाल सिंह नेपाली की कविता- नज़रों के तीर बहुत देखे

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आज का शब्द: मरघट और गोपाल सिंह नेपाली की कविता- नज़रों के तीर बहुत देखे
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आज का शब्द: मरघट और गोपाल सिंह नेपाली की कविता- नज़रों के तीर बहुत देखे

' हिंदी हैं हम ' शब्द शृंखला में आज का शब्द है- मरघट , जिसका अर्थ है- वह घाट या स्थान जहाँ मुर्दे फूँके जाते हैं, मुर्दों को जलाने की जगह, श्मशान घाट, मसान। प्रस्तुत है गोपाल सिंह नेपाली की कविता- नज़रों के तीर बहुत देखे जब दर्द बढ़ा तो बुलबुल ने, सरगम का घूँघट खोल दिया दो बोल सुने ये फूलों ने मौसम का घूँघट खोल दिया बुलबुल ने छेड़ा हर दिल को, फूलों ने छेड़ा आँखों को दोनों के गीतों ने मिलकर फिर शमा दिखाई लाखों को महफ़िल की मस्ती में आकर सब कोई अपनी सुना गए जब काली कोयल शुरू हुई,...

जब दर्द बढ़ा तो बुलबुल ने, सरगम का घूँघट खोल दिया काली आँखों का ताजमहल अंदर से गोरा-गोरा है अंदर है झिलमिल दीवाली बाहर से कोरा-कोरा है भादों की रातों में मिलकर जब भी दो नयना चार हुए उठ-उठकर काली पलकों ने, पूनम का घूँघट खोल दिया जब दर्द बढ़ा तो बुलबुल ने सरगम का घूँघट खोल दिया सावन में नाचा मोर मगर, सरगम न हुआ, पायल न हुई नज़रें तो डालीं लाखों ने पर एक नज़र घायल न हुई यह नाच अधूरा प्रियतम का देख न गया तो बादल ने छितरा दी पायल गली-गली, छमछम का घूँघट खोल दिया जब दर्द बढ़ा तो बुलबुल ने, सरगम का...

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