ऑस्ट्रेलिया के एक प्रांत के चुनावों में पालतू जानवरों की लिस्ट से मगरमच्छ को बाहर रखने के नए नियम के कारण मगरमच्छ भी एक चुनावी मुद्दा बन गया है.
सुनने में तो ये बिल्कुल ऑस्ट्रेलिया में प्रचलित कोर कल्पित कहानी जैसी लगती है. बिलकुल वैसी ही जैसे की कंगारू पर चढ़कर स्कूल जाना.डॉर्विन से एक किलोमीटर दक्षिण बैचलर में ट्रेवर सुलिवन अपने घर में ग्यारह मगरमच्छों के साथ रहते हैं.
सुलिवन के घर आने से पहले क्वींसलैंड क्रोकोडाइल पार्क में एक लड़ाई में इस विशालकाय मगरमच्छ के निचले जबड़े का आधा हिस्सा टूट चुका है. एक बार तो वो ज़हर देने के कारण एकदम मरणासन्न अवस्था में पहुँच चुका था. ऑस्ट्रेलिया में उत्तरी टेरिटरी एक अंतिम स्थान में से एक हैं जहां मगरमच्छों को अपने घर पालतू जानवर के रूप में रखने की इजाज़त है लेकिन अब सरकार का कहना है कि वे इंसान और मगरमच्छ दोनों की भलाई के लिए चिंतित हैं.
आमतौर पर उनके एक वर्ष के हो जाने पर उन्हें अधिकारियों को सौंप दिया जाना एकदम आवश्यक है या फिर शहरी क्षेत्र से बाहर ले जाना ज़रूरी है. टैटू बनाने वाले और स्वयंभू संरक्षणवादी टॉम हेस बीबीसी से कहते हैं, “मैं उस तरह का व्यक्ति नहीं हूँ जिसे वीकेन्ड पर अपने दोस्तों के साथ साथ बारबेक्यू के लिए मगरमच्छ चाहिए हो. मेरी इच्छा थी कि मैं इन बेचारे जानवरों को यहां ला सकूँ ताकि वो अपना जीवन जी सकें और उन्हें गोली मारने वाले लोगों के बारे में चिंता करने की ज़रूरत न पड़े.”
आरएसपीसीए एनटी के चार्ल्स गिलियम ने कहा कि मगरमच्छों की खतरनाक प्रवृत्ति के मद्देनज़र इन मगरमच्छों को स्वीकार्य मानक के अनुसार ही जीवन स्तर और चिकित्सा देखभाल मिले इसके लिए अधिकारियों के लिए योजनाओं को सुनिश्चित और संचालित करना कठिन बना दिया. इस मसले पर वो सरकार के ऊपर सही परामर्श से बचने के लिए व्यापक मगरमच्छ प्रबंधन योजना में नए नियमों को छिपाने का आरोप लगाते हैं.
सुलिवन कहते हैं, "जंगलों में उनके पास एक बाढ़ क्षेत्र होता है और वहाँ रहने के लिए उन्हें लड़ना पड़ता है. उन्हें भोजन के लिए हमेशा शिकार करना पड़ता है. हमेशा अपने दुश्मनों का पीछा कर रहे होते हैं. यहाँ तक की अपनी प्रेमिकाओं को भी ठीक रखने की भी कोशिश करनी पड़ती है. इसके कारण जंगल में जीवन बहुत कठिन हो जाता है और कै़द में उन्हें पानी, सूर्य की रौशनी, छाया और खाना सब कुछ मिलता है नियमित तौर पर मिलता है जिसे वो पसंद करते हैं.
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