भारत और ईरान ने सोमवार को आर्थिक और सामरिक लिहाज़ से एक अहम समझौता किया है.
भारत और ईरान ने सोमवार को एक ऐसा समझौता किया है, जिसे पाकिस्तान और चीन के लिए झटके के तौर पर देखा जा रहा है.शाहिद बेहेस्ती ईरान का दूसरा सबसे अहम बंदरगाह है.
पाकिस्तान और चीन ईरानी सरहद के क़रीब ग्वादर पोर्ट को विकसित कर रहे हैं. भारत, ईरान और अफ़ग़ानिस्तान को जोड़ने वाले चाबहार पोर्ट को ग्वादर पोर्ट के लिए चुनौती के तौर पर देखा जाता है.साल 2016 में ईरान और भारत के बीच शाहिद बेहेस्ती बंदरगाह के संचालन के लिए समझौता हुआ था. नए समझौते को 2016 समझौते का ही नया रूप बताया जा रहा है.
भारत ईरान के चाबहार बंदरगाह के ज़रिए अफ़ग़ानिस्तान और मध्य एशिया तक अपनी पहुंच को और आसान करना चाहता है.भारत और ईरान के बीच ये समझौता ऐसे दौर के बाद हुआ है, जब दोनों देशों के बीच चाबहार पोर्ट के मुद्दे पर दूरियां देखने को मिली थीं.भारत के जहाज़रानी मंत्री सरबानंद सोनोवाल ने ईरान पहुंचकर अपने ईरानी समकक्ष के साथ इस अहम समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं.इस साल जनवरी में ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने जयशंकर से मुलाक़ात की थी.
ईरान चाहता है कि भारत इस प्रोजेक्ट को जल्द से जल्द पूरा करे. इस मामले में भारत की तुलना चीन से की जाती है कि चीन अपनी परियोजनाओं को जल्दी लागू कर देता है जबकि भारत ऐसा नहीं कर पाता है.समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक़, अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण भी इस पोर्ट को विकसित करने में देरी हुई.2023 में इब्राहिम रईसी ने चीन का दौरा किया थाचाबहार पोर्ट चीन की अरब सागर में मौजूदगी को चुनौती देने के लिहाज से भी भारत के लिए मददगार साबित हो सकता है.
पहले अफ़ग़ानिस्तान में खाद्यान्न पहुँचाने के लिए भारत को पाकिस्तान के सड़क मार्ग का इस्तेमाल करना पड़ता था.सामरिक दृष्टि से भी पाकिस्तान में चीन के नियंत्रण वाले ग्वादर पोर्ट के पास भारतीय मौजूदगी अहम मानी जा रही है.साल 2019 में पहली बार इस पोर्ट का इस्तेमाल करते हुए अफ़ग़ानिस्तान से माल पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए भारत आया था.ईरान के तटीय शहर चाबहार में बंदरगाह के विकास के लिए भारत और ईरान के बीच साल 2003 में सहमति बनी थी.
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