बीजापुर जिले में नक्सलियों ने सुरक्षाबलों पर हमला कर 9 जवानों को शहीद कर दिया। इस घटना के बाद राज्य में नक्सलियों के खिलाफ अभियान तेज किया जा रहा है।
चत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में सोमवार दोपहर नक्सलियों ने एक बड़ा हमला किया। इस हमले में 9 जवान शहीद हो गए। यह हमला बीजापुर जिले के कुटरू इलाके में किया गया। नक्सलियों ने सुरक्षाबल ों की गाड़ी को आईईडी से उड़ा दिया। राज्य में नक्सलियों के खिलाफ लगातार ऑपरेशन चला रहा है। राज्य के नक्सल प्रभावित जिलों में नक्सलियों पर लगाम लगाने के लिए डीआरजी (डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड) जवानों की टोली काम करती है। आइए जानते हैं कि आखिर डीआरजी जवान कौन होते हैं। इनकी ट्रेनिंग कैसे होती है? कब हुआ डीआरजी का गठन? बस्तर
क्षेत्र में 7 जिले आते हैं। यह सभी सातों जिलें नक्सलवाद से प्रभावित हैं। नक्सलियों से लड़ने के लिए 2008 में डीआरजी का गठन किया गया था। सबसे पहले कांकेर और नारायणपुर जिलों के नक्सल विरोधी अभियान में इसे शामिल किया गया था। वर्ष 2013 में बीजापुर और बस्तर में इसका गठन किया गया। 2014 में सुकमा और कोंडागांव के बाद 2015 में दंतेवाड़ा में इसका गठन हुआ। नक्सलियों के सबसे बड़े दुश्मन माने जाते हैं डीआरजी जवान नक्सलियों के सबसे बड़े दुश्मन माने जाते हैं यही कारण है कि डीआरजी के जवान इनके निशाने पर रहते हैं। डीआरजी के जवान इलाकों से पूरी तरह से परिचित होते हैं। सुरक्षाबलों की अन्य टीमें डीआरजी के जवानों के साथ मिलकर नक्सल विरोधी अभियान को आगे बढ़ाती हैं। डीआरजी में किसकी भर्ती होती है डीआरजी में छत्तीसगढ़ के स्थानीय लोगों को भर्ती किया जाता है। छत्तीसगढ़ के नक्सल इलाके ज्यादातर आदिवासी क्षेत्र में ही आते हैं। ऐसे में सुरक्षाबलों के जवानों को उनकी बोली और भाषा समझने में दिक्कत होती है। स्थानीय लोगों को यहां की भाषा, बोली और जंगल के बारे में जानकारी होती है। डीआरजी के जवान तीन से चार दिन तक जंगलों में नक्सलियों की तलाशी कर सकते हैं। डीआरजी में उन नक्सलियों को भी शामिल किया जाता है जो सरेंडर करने के बाद मुख्यधारा में आते हैं। सरेंडर करने वाले नक्सली जब जवान बनते हैं तो वह नक्सलियों की रणनीति को जानते हैं जिससे जवानों को फायदों मिलता है। यही कारण है कि यह जवान नक्सलियों के सबसे बड़े दुश्मन माने जाते हैं। गुरिल्ला लड़ाई में माहिर डीआरजी नक्सलियों के खिलाफ कई अभियानों को सफलतापूर्वक अंजाम दे चुका है। डीआरजी के जवान नक्सलियों की गुरिल्ला लड़ाई का उन्हीं की भाषा में जवाब देते हैं। उन्हें जंगल के रास्तों क
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