जब प्रधानमंत्री पद से बेदखल किए जा रहे देवेगौड़ा ने वाजपेयी और राव को लंच में खिलाया 'खट्टा' तरबूज
प्रधानमंत्री रहते हुए देवगौड़ा ने कांग्रेस से एक निश्चित दूरी बनाए रखी। यही उन्हें महंगा भी पड़ा। कांग्रेस में बहुत से तत्त्व थे जो सरकार से खुश नहीं थे। खुद कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी की यही स्थिति थी कि वह कई सवालों पर सरकार को दबाना चाहते थे और अक्सर ही प्रधानमंत्री से खुन्नस खाए रहते। उन्हें तो उस सरकार में मंत्रियों को आवंटित गाड़ियों के हूटर सायरन तक से दिक्कत थी। बताते हैं कि वह कहा करते थे, मंत्रियों ने अपने ड्राइवरों को हिदायत दे रखी है कि दिल्ली के 24, अकबर रोड स्थित कांग्रेस के...
अगले दिन एक औपचारिक मध्याह्न भोज में दो मित्र नरसिम्हा राव और अटल बिहारी वाजपेयी- एक ही टेबल पर थे। इस भोज में मीठे के तौर पर तरबूज प्रस्तुत किया गया था। वाजपेयी उस समय लोकसभा में विपक्ष के नेता थे। उन्होंने तरबूज को ‘खट्टा’ बताते हुए आश्चर्य व्यक्त किया कि सीजन न होने के बावजूद इस दावत में तरबूज क्यों प्रस्तुत किया गया? इस पर राव ने व्यंग्य से कहा, ‘जब हम बजट सत्र के दौरान समर्थन वापस ले सकते हैं तो ऑफ सीजन तरबूज क्यों नहीं पेश कर...
लोकसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘यह मेरी नियति है। मैं मिट्टी से उठकर फिर यहां विराजमान होने वाला हूं।’ कांग्रेस अध्यक्ष केसरी द्वारा राष्ट्रपति केआर नारायणन को समर्थन वापसी का पत्र भेजे जाने का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘मुझे तुम्हारे अध्यक्ष के प्रमाणपत्र की जरूरत नहीं है।’ अपने भाषण में उन्होंने यह कहते हुए कांग्रेस और उसके अध्यक्ष पर तीखा वार किया कि ‘अपनी राजनीतिक यात्रा में मैं 10 चुनावों में भाग ले चुका हूं। केसरी ने अब तक कितने चुनाव लड़े...
11 अप्रैल, 1997 को अविश्वास प्रस्ताव पर चल रही इस बहस में पी. चिदंबरम ने कुछ महत्त्वपूर्ण बातें कहीं। संयुक्त मोर्चा सरकार में वह वित्त मंत्री थे। शांत व संयत पी. चिदंबरम ने कहा, ‘राजनीति में पूर्ण विराम नहीं होते। इसमें सिर्फ कॉमा और सेमी कोलन की श्रृंखला होती है। हर आरंभ का अंत है और हर अंत के बाद एक नई शुरुआत है। आइए, हम एक नया अध्याय शुरू करने के लिए फिर से जुड़ते हैं।’
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