नगालैंड में 13 लोगों की मौत को सेना बता रही 'ग़लती' पर लोग क्या कह रहे हैं?- ग्राउंड रिपोर्ट
म्यांमार की सीमा से सटे, नगालैंड के मोन ज़िले में, सेना के एक गश्ती दल ने कोयला खदान में काम कर लौट रहे मज़दूरों के एक समूह को चरमपंथी समझकर उन पर गोलीबारी शुरू कर दी थी.
झड़प के दौरान आठ गाँव वालों के अलावा एक फ़ौजी की भी मौत हुई. गंभीर रूप से घायल दो युवाओं का डिब्रूगढ़ के असम मेडिकल में इलाज चल रहा है लेकिन अस्पताल प्रशासन ने उनसे मिलने की अनुमति नहीं दी.असम के सोनारी से नगालैंड की सीमा में प्रवेश करते ही तनाव साफ़ दिखता है. सुरक्षा बढ़ी हुई है और सिपाहियों ने बीबीसी की टीम को तभी प्रवेश करने दिया जब मोन के नगा काउंसिल प्रमुख से हमने उनकी बात करवाई.
अधेड़ उम्र की एक महिला दूसरी क़ब्र पर बिलखते हुए कह रही थी, "मेरा बेटा नांगफो दो साल का था, जब उसके पिता गुज़र गए. मैंने मज़दूरी कर उसे पाला था और सोचा था कि अब वो मेरा सहारा बनेगा". मगर एकाएक हुई हिंसा ने सबको झझकोर दिया है. ओटिंग गाँव में कुछ परिवार ऐसे हैं, जिनका भविष्य धुँधला दिखता है.तीरू की कोयला खदान में काम करने वाले जुड़वा भाई थापुवांग और लांगवाँग उस ट्रक में थे, जिस पर फ़ौजी टुकड़ी ने गोली चलाई. उनके भाई नेनवांग विकलांग हैं.
घटना के बाद गृह मंत्री अमित शाह ने संसद को बताया था कि, "निर्णय लिया गया कि सभी सुरक्षा एजेंसियों को ये सुनिश्चहित करना चाहिए कि विद्रोहियों के ख़िलाफ़ अभियान चलाते समय भविष्य में ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना की पुनरावृति न हो."ग्रामीणों के साथ बीबीसी संवाददाता नितिन श्रीवास्तव