पश्चिमी उत्तर प्रदेश से 2014 के लोकसभा चुनावों में एक भी मुस्लिम सांसद नहीं चुना गया था लेकिन 2019 में पांच सांसद जीते.
मुसलमान युवाओं का मानना है कि अगर मुसलमानों का प्रतिनिधित्व संसद में और कम हुआ तो मुसलमान दूसरे दर्जे के शहरी बनकर रह जाएंगेचुनाव अपने चरम पर हैं लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुस्लिम बहुल इलाक़ों में ख़ामोशी है.
सहारनपुर से हाजी फ़ज़लुर्रहमान, अमरोहा से कुंवर दानिश अली, संभल से डॉ. शभीकुर्रहमान बर्क़, मुरादाबाद से एसटी हसन और रामपुर से आज़म ख़ान ने जीत दर्ज की थी. लेकिन 2024 का चुनाव आते आते राजनीतिक समीकरण बदल गए हैं. मुरादाबाद से समाजवादी पार्टी ने मौजूदा सांसद एसटी हसन का टिकट काटकर रूची वीरा को उम्मीदवार बनाया है जबकि यहां बसपा ने इरफ़ान सैफ़ी को टिकट दिया है.
एक मुस्लिम नेता की छवि वाले इमरान मसूद ने अब रणनीति बदल ली है. वो हिंदू बहुल इलाक़ों में जनसंपर्क पर अधिक ध्यान दे रहे हैं. भगवा वेश पहने क़रीब 45 वर्षीय एक साधु कहते हैं, "जो नेता पब्लिक के बीच हो और अच्छा काम करे उसे वोट देना चाहिए. इमरान कई बार चुनाव हार चुका है, उसका काम अभी किसी ने नहीं देखा है, जनता के बीच रहता है, एक मौका उसे भी देकर देखना चाहिए."
एक दलित और मुसलमान बहुल गांव में जनसंपर्क कर रहे माजिद अली कहते हैं, "मुसलमान और दलित वोटों का गठजोड़ ही इस सीट पर बीजेपी को हरा सकता है. गठबंधन के उम्मीदवार इमरान मसूद यहां मुसलमान वोटों को काटने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन लोग अब समझदार हो गए हैं." एक जाट बहुल गांव में क़रीब दो सौ लोगों की जनसभा में इक़रा अकेली महिला हैं. यहां मंच संचालक बार-बार लोगों का नाम पुकार रहे हैं जो इक़रा को माला पहनाकर सर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दे रहे हैं.
क़रीब 60 साल की एक महिला कहती हैं, "लड़की परिवार को बेहतर समझती है, 50 परसेंट तो लड़कियां ही हैं, अब लड़कियां पीछे ना हैं और ना रहेंगी."जेएनयू छात्रसंघ चुनावः क्या लेफ़्ट के क़िले में एबीवीपी लहरा पाएगा झंडा- ग्राउंड रिपोर्टPlay video, "हिंदू बहुल सीट पर मुस्लिम महिला उम्मीदवार इक़रा हसन क्या बीजेपी को दे पाएंगी चुनौती?", अवधि 6,06धार्मिक और जातिगत समीकरणों के बीच इक़रा हसन महिलाओं के बीच अपनी पैठ बनाती नज़र आती हैं.
कई लोग यहां एक जैसी राय ज़ाहिर करते हुए कहते हैं कि इक़रा लोगों के बीच रहती है, यदि वो चुनाव जीतती हैं तो यही इसका सबसे बड़ा कारण होगा.यहां से क़रीब दो सौ किलोमीटर दूर अमरोहा में बहुजन समाज पार्टी के मौजूदा सांसद दानिश अली इस बार कांग्रेस के टिकट पर गठबंधन के उम्मीदवार हैं.दानिश अली कहते हैं, "संसद में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व लगातार घटता जा रहा है क्योंकि पिछले कुछ सालों में ऐसा माहौल बनाया गया है कि जहां कोई मुसलमान प्रत्याशी होता है वहां सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने की साज़िश की जाती है.
वहीं, बहुजन समाज पार्टी भी इस सीट पर मुस्लिम और दलित वोटों को अपने पक्ष में एकजुट करने का प्रयास कर रही है. हालांकि आज़ाद ख़ालिद इन आरोपों को सिरे से ख़ारिज करते हुए कहते हैं, "बसपा वोट नहीं काटती है बल्कि अपने दलित वोट बैंक के साथ मुसलमानों का प्रतिनिधित्व सुरक्षित करने की गारंटी देती है. जब-जब मुसलमान और दलित वोट साथ आते हैं, चुनाव में जीत मिलती है. चूंकि बसपा शोषित और ग़रीब वर्ग की पार्टी है, ऐसे में उस पर कोई भी आरोप लगा देता है."
उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की आबादी क़रीब बीस प्रतिशत मानी जाती है. मुसलिम युवा तर्क देते हैं कि धर्मनिरपेक्षता की राजनीति का दावा करने वाले विपक्ष के 'इंडिया' गठबंधन ने भी इस तबके को आबादी के लिहाज़ से टिकट नहीं दिया है, बाक़ी दलों से तो क्या ही उम्मीद की जाए. यहां समाजवादी पार्टी ने मौलाना मोहिबुल्लाह नदवी को मैदान में उतारा है, वहीं बहुजन समाज पार्टी से जीशान ख़ान दावा ठोक रहे हैं.
ये मुस्लिम युवा चुनावों के दौरान प्रशान के दमनकारी रवैये का आरोप लगाते हुए कहता है, "रामपुर का मुसलमान डरा हुआ है. यहां लोगों को डर लगता है कि कहीं पुलिस घर ना पहुंच जाए." सहारनपुर के मसूद राजनीतिक परिवार से संबंध रखने वाले हमज़ा मानते हैं कि मुसलमानों को राजनीति में अलग-थलग किया जा रहा है.
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