मणिपुर में लोग चुनाव नहीं, शांति चाहते हैं

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जातीय हिंसा से जूझते मणिपुर में इस बार चुनाव को लेकर कोई उत्साह नहीं है. लोग कहते हैं कि उन्हें चुनाव नहीं, शांति चाहिए.

पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर की राजधानी इंफाल के एक राहत शिविर में ओनियम सिंह पिछले करीब एक साल से रह रहे हैं. वह कहते हैं,"हम बीते 11 महीनों से अपने ही घर में बेगाने हो गए हैं. वोट डालने से हमारी समस्या हल नहीं होगी. सरकार ने हमारे लिए कुछ भी नहीं किया है. केंद्र ने जब इतने दिनों तक राज्य के लोगों के बारे में नहीं सोचा तो इस समय चुनाव भी नहीं कराना चाहिए था. हमें चुनाव नहीं बल्कि शांति और सुरक्षा की जरूरत है.

बीजेपी नेता यहां इनर मणिपुर की सीट पर जीत के दावे जरूर कर रहे हैं लेकिन अनौपचारिक बातचीत में वे भी मानते हैं कि इस बार जीत की राह आसान नहीं होगी. मैतेई हों या कुकी, लोगों में नाराजगी इस बात पर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ना तो राज्य का दौरा किया है और न ही इस पर कोई टिप्पणी की है. लोकसभा चुनाव के दौरान भी उनकी मणिपुर में आने की कोई योजना नहीं है.

कुकी समुदाय ने पहले ही चुनाव में शामिल नहीं होने का ऐलान कर दिया था. इसलिए इस समुदाय से किसी ने भी नामांकन नहीं दाखिल किया है. कुकी संगठन इंडिजनस ट्राइबल लीडर्स फोरम के अध्यक्ष पी. हाओकिप ने एक बयान में कहा है कि समुदाय के लोगों को अपने मताधिकार का इस्तेमाल करना चाहिए लेकिन हमने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला बहुत पहले ही कर लिया था. उनके मुताबिक, इस समुदाय के लिए अलग स्वायत्त क्षेत्र की मांग पूरी नहीं होने तक इस समस्या का समाधान संभव नहीं है.

देश के दूसरे राज्यों के उलट यहां चुनावी बैनर और पोस्टर बहुत कम नजर आते हैं. उनकी बजाय जगह-जगह अवैध हथियारों को लौटाने के लिए लगे ड्रॉप बाक्स और उन पर अंग्रेजी और स्थानीय भाषा में हथियारों को लौटाने की अपील लिखी नजर आती है. बीते साल शुरू हुई हिंसा के दौरान मैतेई और कुकी संगठनों ने पुलिस थानों और दूसरी जगहों से भारी तादाद में हथियार लूट लिए थे. मुख्यमंत्री की अपील के बाद कुछ लोगों ने हथियार जरूर लौटाए हैं.

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