राजस्थान की सियासत के साहिल पर जिस तरह भाजपा की कश्तियां एक-एक कर डूबी हैं और जिस तरह कांग्रेस और उसके सहयोगी जीते हैं, उससे प्रदेश में हैरानियां तैर रही हैं.
लोकसभा 2024 के इस चुनाव में राजस्थान के नतीजों में भाजपा को 14 बनाम 11 के आंकड़े ने सत्तारूढ़ भाजपा और उसके समर्थकों को बहुत बेचैन कर दिया है.ख़ासकर साल 2019 में अपने एक समर्थक के साथ सभी 25 लोकसभा सीटों पर परचम फहराने वाली भाजपा के लिए इन नतीजों को पचा पाना आसान नहीं है.
भाजपा ही नहीं, कुछ समय पहले तक राजनीतिक विश्लेषकों को भी इसी तरह के संकेत मिल रहे थे कि पार्टी एक बार फिर पहले जैसे समर्थन के साथ ही आ रही है. लेकिन चुनाव के बीच में पूरा खेल उलटपलट गया.
वैसे तो यह बहुत सामान्य ट्वीट प्रतीत होता है; लेकिन डॉ. मीणा के पिछली शाम या कुछ दिनों के बयानों पर ध्यान दें तो इससे कुछ ऐसा छलकता और झलकता है, जो भाजपा की अंदरूनी राजनीति के लिए परेशानी और पशेमानी का सबब बन सकता है. जालौर से पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत भाजपा के एक स्थानीय नेता लुंबाराम के मुक़ाबले 2,01,543 वोटों से हार गए हैं. वे पिछली बार 2019 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गृह क्षेत्र जोधपुर से केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता गजेंद्रसिंह शेखावत के मुकाबले 2,74,440 वोटों से हारे थे.
सबसे दिलचस्प जीत चूरू में रही है, जहाँ कांग्रेस ने भाजपा से आए राहुल कस्वां को टिकट दिया था और वे भाजपा के एक बड़े अभियान के सामने न केवल मज़बूती से टिक पाए, बल्कि 71,265 वोटों से जीत गए हैं. भाटी शिव से निर्दलीय विधायक थे और भाजपा को समर्थन दे चुके थे. लेकिन अंदरूनी राजनीति के चलते उन्होंने चुनाव लड़ा. भाटी चुनाव नहीं लड़ते तो यहाँ कांग्रेस की जीत लगभग नामुमकिन थी; क्योंकि भाटी की तरफ गया अधिकतर वोट राजपूतों और युवाओं का था, जो स्वाभाविक रूप से भाजपा का परंपरागत मतदाता था. जाट वोट बंट गया और राजपूत भाजपा से दूर चला गया तो एक नया ही समीकरण बन गया.राजस्थान में तीन सीटें इस बार कांग्रेस ने समझौते में सहयोगी दलों को दी और इन तीनों पर उन दलों के उम्मीदवार जीते हैं.
मिर्धा को भाजपा ने कांग्रेस से लाकर टिकट दिया था. उन्हें भाजपा ने विधानसभा चुनाव में भी नागौर सीट से उतारा था, लेकिन वे कांग्रेस के हरेंद्र मिर्धा से हार गई थीं. इसके बाद चुनाव के दौरान जब भारतीय आदिवासी पार्टी और कांग्रेस का समझौता हो गया तो कांग्रेस के उम्मीदवार अरविंद सीता दामोर को मालवीय समर्थकों ने मना लिया कि वे टिकट वापस नहीं करें और चुनाव में डटे रहें.
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस ने समय रहते भारतीय आदिवासी पार्टी से समझौता किया होता तो कई सीटों पर फर्क पड़ता. जैसे उदयपुर में ही भाजपा के मन्नालाल रावत ने कांग्रेस के तारांचद मीणा पर दो लाख से अधिक मतों से लीड ले रखी थी, लेकिन इसी सीट पर भारतीय आदिवासी दल ने दो लाख से अधिक वोट लिए हैं. मैं चुनाव आयोग से मांग करता हूं कि इस सीट पर पारदर्शिता के साथ पुनः काउंटिंग की जाए. लेकिन यह स्पष्ट है कि पहली बार के अनिल चाेपड़ा नाम वाले इस अनाम से चेहरे ने भाजपा के एक पुराने नेता राव राजेंद्रसिंह को पूरे चुनाव में बुरी तरह छकाए रखा.
राजस्थान के इन परिणामों पर पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कहते हैं, "2024 का लोकसभा चुनाव प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूरी तरह अपने ऊपर केन्द्रित किया. प्रचार में मोदी की गारंटी, फिर से मोदी सरकार जैसे जुमले भाजपा शब्द से ज्यादा सुनाई और दिखाई दिए. यहां तक की सांसद प्रत्याशियों को बायपास कर पूरा चुनाव मोदी की गारंटी के नाम पर चला. चुनाव में महंगाई, बेरोजगारी, समाज में बढ़ता तनाव जैसे मुद्दे गौण हो गए और केवल मोदी-मोदी ही सुनाई देने लगा.
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