रूस यूक्रेन विवाद में तटस्थता भारत के मूल्यों के खिलाफ है?

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Opinion | भारत को यह तय करना होगा कि प्रधानमंत्री NarendraModi ने जिन मूल्यों को व्यक्त किया था, और जिन पर उसकी स्थापना हुई, क्या उसी पर कायम रहना है. | RaymondVickery

इन मूल्यों की रक्षा करना मुश्किल है, क्योंकि बहुत से देशों के पास परमाणु हथियार हैं. इन हथियारों के कूटनीतिक इस्तेमाल से मौत और विनाश का ऐसा तांडव हो सकता है जिसकी अब तक विश्व ने कल्पना भी नहीं की होगी. यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि सामूहिक विनाश करने वाले इन हथियारों के इस्तेमाल से मानव सभ्यता का अंत हो जाएगा. इसीलिए हमारा दायित्व है कि हम लोकतंत्र की रक्षा और शांति कायम करने का यत्न करें.

1947 में आजादी मिलने के बाद आधुनिक भारत अक्सर रूस, यानी उसके यूएसएसआर के अवतार के साथ रहा. उसका तर्क था, कि यह उस साम्राज्यवाद का विकल्प है जिसने भारत को इतने लंबे समय तक पीड़ित किया था. लेकिन यह बेझिझक कहा जा सकता है कि यूक्रेन पर पुतिन का हमला बरसों पुरानी साम्राज्यवादी महात्वाकांक्षा का उदाहरण ही है जिसे हिंसा के जरिए पूरा करने की कोशिश की जा रही है.

भारत ने जिन बुनियादी मूल्यों के उल्लंघन की निंदा से परहेज किया, उसकी स्थापना भी उन्हीं मूल्यों पर हुई थी. क्या इसे समझना मुश्किलन नहीं? इनके लिए भू राजनैतिक कारणों का हवाला दिया गया है. कहा गया है कि इससे हथियारों की खरीद पर असर पड़ सकता है. ज्यादातर भारतीय विश्लेषक कहते हैं कि चीन, प्रत्यक्ष तरीके से और पाकिस्तान के जरिए भारत के लिए बड़ा खतरा बन रहा है.सच्चाई तो यह है कि चीन न सिर्फ हिमालयी क्षेत्र, बल्कि अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों पर भी दावा कर रहा है. और चीन का सबसे करीबी सहयोगी कौन है- बेशक रूस. उदाहरण के लिए यूक्रेन पर हमला के वक्त ही रूस ने चीन से सहमति भी जताई है कि वह बीजिंग विंटर ओलंपिक्स में दखल नहीं देगा.

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