लालू के कांग्रेस मोह का पतन

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लालू के कांग्रेस मोह का पतन
लालू यादवकांग्रेसममता बनर्जी
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लालू यादव के कांग्रेस के प्रति मोहबंग का पतन हुआ है।

पटना: लालू यादव के जलवे का युग खत्म हो गया है, ऐसा लगता है। सियासत के बड़े खिलाड़ी होने के बावजूद लालू का कोई राजनीति क लाभ न उनकी पार्टी आरजेडी को मिल रहा है और न उनसे सटे दूसरे राजनीति क दल ही ले पा रहे हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में भी लालू रणनीतिक चूक कर गए थे, जिसका खामियाजा उनके बेटे को भोगना पड़ा। तेजस्वी यादव का जलवा जरूर दिखा, लेकिन लालू के कांग्रेस प्रेम ने उनकी लुटिया डुबो दी थी। वे सीएम बनने से चूक गए थे। कांग्रेस ने तेजस्वी की ताजपोशी रोकी। लालू भी समझ गए हैं कि कांग्रेस के माया

जाल में फंसे रहने का अब कोई औचित्य नहीं है। प्रियंका गांधी के दबाव में कांग्रेस को आरजेडी ने विधानसभा चुनाव में 70 सीटें नहीं दी होतीं तो शायद नीतीश कुमार नहीं, तेजस्वी यादव आज बिहार के सीएम होते। कांग्रेस 70 में सिर्फ 19 सीटें ही जीत पाई थी। 12-14 सीटें कम रहने के कारण तेजस्वी की ताजपोशी नहीं हो पाई थी। कांग्रेस से अब कोई उम्मीद नहीं। शायद यही वजह है कि लालू का अब कांग्रेस से मोह भंग हो गया है। राहुल गांधी की जगह ममता बनर्जी को इंडिया ब्लाक का प्रमुख बनाने पर लालू यादव ने भी अखिलेश यादव, शरद पवार, उद्धव ठाकरे और अरविंद केजरीवाल की तरह सहमति जता दी है। वे ताल ठोंक कर कहते हैं कि ममता बनर्जी को इंडिया ब्लाक का नेतृत्व मिलना चाहिए। आश्चर्य होता है कि राहुल का दूल्हा बनने का प्रस्ताव देने वाले लालू अब उन्हें कुंआरा रखने की राय जता रहे हैं। ममता भी इन नेताओं के मिले समर्थन से गदगद हैं। उन्होंने सबका आभार जताया है। लालू के स्टैंड से सियासी पंडित भौंचकलालू के रुख में अचानक आए इस बदलाव का सियासी पंडित विश्लेषण करने में जुट गए हैं। वे समझ नहीं पा रहे कि राहुल गांधी को विपक्ष का दूल्हा बताने वाले और सोनिया गांधी के सियासी जमाने से ही बेहतर संबंधों के बावजूद लालू ने अचानक अपना मानस कैसे बदल लिया। राहुल की राह में किसी तरह की रुकावट न आए, इसके लिए लालू ने 17 महीने तक साथ-साथ सरकार चलाने वाले रहे नीतीश कुमार के साथ खड़े न होने का निर्णय लिया था। बेटों को सत्ता सुख से वंचित करने का जोखिम मोल लेने में तनिक भी संकोच नहीं किया था। कांग्रेस मोह में ही नीतीश का साथ छूटालालू ने नीतीश कुमार का साथ दिया होता तो वे इंडिया ब्लाक का संयोजक तो बन ही गए होते। नीतीश ने पीएम की रेस से पहले ही अपने को अलग कर लिया था

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