सरकार Budget2022 में यह बताने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी कि किसानों की आय को दोगुना करने की कितनी कोशिश हुई. पर वित्त मंत्री सरकारी नीतियों के चलते कर्ज तले दबे किसानों की चर्चा नहीं करेंगी | KotaNeelima
कुछ वादे इतने सुहावने होते हैं कि वे वास्तविकता से कोसों दूर ही होते हैं. केंद्र सरकार ने वर्ष 2022 तक भारतीय किसानों की आय को दोगुनी करने का टारगेट निर्धारित किया था. खैर इसके बजाय, वादे और सरकारी पॉलिसी के बीच की खाई ने किसानों के संकट को ही दोगुना कर दिया है. इसके निम्नलिखित सात कारक हैं:: राष्ट्रीय सांख्यिकी और सर्वेक्षण संगठन की रिपोर्ट में बताया गया कि ग्रामीण भारत में कृषक परिवारों की औसत मासिक आय 8,337 रुपये थी, जो कई अलग-अलग स्रोतों से कमाई गई थी.
किसान आत्महत्या के आंकड़े इन बहुप्रचारित योजनाओं के लिए आइना हैं और इस सच्चाई को उजागर करते हैं कि छोटे और सीमांत किसान अपनी गिरती आय और बढ़ते कर्ज के बोझ के कारण खुद को मार रहे हैं.: खेती के लिए आवश्यक इनपुट लागत खर्च में महत्वपूर्ण योगदान देती है और इसमें वृद्धि किसानों की आय में कटौती करती है. यह कृषि संकट और किसानों की आत्महत्या का एक महत्वपूर्ण कारण भी हैं.
प्लास्टिक पाइपों पर GST 18% है, जो किसानों के लिए सिंचाई या भूजल तक पहुंच के लिए इसके इस्तेमाल को मुश्किल बना देता है. एक ऐसा देश जहां 65% सिंचाई भूजल पर निर्भर हो, वहां प्लास्टिक पाइपों पर इतने टैक्स का कृषि आय पर गंभीर प्रभाव पड़ता है.: आयात और किसानों के हित में विरोधाभास, विशेष रूप से तिलहन में. खाद्य तेल आयात बिल में 75% की वृद्धि हुई है और भारत दुनिया में इसके सबसे बड़े आयातकों में से एक है. इससे तिलहन किसानों को नुकसान होगा.
फिर खुले में पड़ी तैयार फसल को लेकर केंद्र और राज्यों, खासकर तेलंगाना, के बीच अनावश्यक राजनीति हो रही है. साथ ही किसान खाद्य फसलों की जगह अन्य फसलों को उगाने के लिए प्रशिक्षित नहीं थे.
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