Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि संविधान का उद्देश्य 'सामाजिक बदलाव की भावना' लाना है और यह कहना 'खतरनाक' होगा कि किसी व्यक्ति की निजी संपत्ति को ‘समुदाय का भौतिक संसाधन’ नहीं माना जा सकता और 'सार्वजनिक भलाई' के लिए राज्य प्राधिकारों द्वारा उस पर कब्जा नहीं किया जा सकता.
नई दिल्ली: क्या लोक कल्याण के लिए प्राइवेट प्रॉपर्टी का अधिग्रहण किया जा सकता है? इस पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि संविधान का उद्देश्य ‘सामाजिक बदलाव की भावना’ लाना है और यह कहना ‘खतरनाक’ होगा कि किसी व्यक्ति की निजी संपत्ति को ‘समुदाय का भौतिक संसाधन’ नहीं माना जा सकता और ‘सार्वजनिक भलाई’ के लिए राज्य प्राधिकारों द्वारा उस पर कब्जा नहीं किया जा सकता. प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ-सदस्यीय संविधान पीठ ने ये टिप्पणी की.
पीठ ने कहा, ‘यह कहना थोड़ा अतिवादी हो सकता है कि ‘समुदाय के भौतिक संसाधनों’ का अर्थ सिर्फ सार्वजनिक संसाधन हैं और उसकी उत्पत्ति किसी व्यक्ति की निजी संपत्ति में नहीं है. मैं आपको बताऊंगा कि ऐसा दृष्टिकोण रखना क्यों खतरनाक है.’ पीठ ने कहा, ‘खदानों और निजी वनों जैसी साधारण चीजों को लें. उदाहरण के लिए, हमारे लिए यह कहना कि अनुच्छेद 39 के तहत सरकारी नीति निजी वनों पर लागू नहीं होगी… इसलिए इससे दूर रहें। यह बेहद खतरनाक होग.
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