जानकारों का मानना है कि कोर्ट का फ़ैसला एक मुद्दे को संबोधित करता है और दूसरे फ़ैसलों के लिए ये आधार बन सकता है.
भारत की सर्वोच्च अदालत के आदेश के बाद बुधवार को न्यूज़क्लिक वेबसाइट के एडिटर-इन-चीफ़ प्रबीर पुरकायस्थ जेल से रिहा हो गए.
इसके बाद, प्रबीर पुरकायस्थ और न्यूज़क्लिक के कई कर्मचारियों के ख़िलाफ़ भारतीय दंड संहिता और यूएपीए की विभिन्न धाराओं के तहत ग़ैरक़ानूनी गतिविधियों, आतंकवाद और आपराधिक साजिश सहित अन्य आरोपों के तहत एफ़आईआर दर्ज की गई थी. अदालत ने कहा कि जिस व्यक्ति को यूएपीए या किसी अन्य अपराध के तहत अपराध करने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया है, उसे गिरफ़्तारी के आधार के बारे में लिखित रूप में सूचित किया जाना चाहिए, ये उसका मौलिक अधिकार है और यह अभियुक्त को 'जल्द से जल्द' मिलना चाहिए.
ये अनुच्छेद आत्म-अभियोजन के ख़िलाफ़ अधिकार, स्वतंत्रता और गिरफ़्तारी एवं हिरासत से बचाव से संबंधित हैं.क़ानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह एक महत्वपूर्ण फ़ैसला है.ने कहा, "यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण फ़ैसला है. यह एक सामान्य चलन है जहां लोगों को गिरफ़्तारी का आधार लिखित में दिए बिना गिरफ़्तार किया जाता है."
ऐसा इसलिए भी है क्योंकि अन्य शर्तें, जैसे ज़मानत की शर्तें समान रहती हैं. यूएपीए के तहत, किसी व्यक्ति को ज़मानत पर तभी रिहा किया जा सकता है जब अदालत को लगे कि किसी व्यक्ति के ख़िलाफ़ सबूत प्रथम दृष्टया नहीं हैं. उदाहरण के लिए 2023 में, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में, जहां ज़मानत की शर्तें यूएपीए के समान हैं, एजेंसियों के पास गिरफ़्तार करने का ठोस कारण होना चाहिए क्योंकि ऐसे मामलों में ज़मानत मिलना मुश्किल होता है.
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