प्रशासन में अनुभवी लोगों की सेवाएं लिया जाना कोई नई-अनोखी बात नहीं है। इसका सिलसिला तो प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के समय ही शुरू हो गया था। इसके बाद की सरकारों में भी यह सिलसिला कायम रहा। अनेक ऐसे उच्च पदों पर विशेषज्ञों को लाया गया जिन्हें आइएएस आइएफएस आदि संभालते थे। मनमोहन सिंह मोंटेक सिंह अहलूवालिया आदि लेटरल एंट्री के जरिये ही उच्च...
विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों में उच्च पदों पर विशेषज्ञता वाले लोगों की एक प्रकार से सीधी भर्ती अर्थात लेटरल एंट्री वाला विज्ञापन वापस लेने से यही स्पष्ट हो रहा है कि मोदी सरकार दबाव में आ गई। दबाव केवल विपक्षी दलों का ही नहीं था, बल्कि सहयोगी दलों का भी था। चंद्रबाबू नायडू ने तो लेटरल एंट्री के जरिये अनुभवी लोगों की भर्ती की पहल का समर्थन किया, लेकिन चिराग पासवान खुलकर विरोध में आ गए। एक अन्य प्रमुख सहयोगी दल जदयू के नेताओं ने भी लेटरल एंट्री का विरोध कर दिया। इससे तो यही लगता है कि मोदी सरकार...
को धक्का लगा है। प्रशासन में अनुभवी लोगों की सेवाएं लिया जाना कोई नई-अनोखी बात नहीं है। इसका सिलसिला तो प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के समय ही शुरू हो गया था। इसके बाद की सरकारों में भी यह सिलसिला कायम रहा। अनेक ऐसे उच्च पदों पर विशेषज्ञों को लाया गया, जिन्हें आइएएस, आइएफएस आदि संभालते थे। मनमोहन सिंह, मोंटेक सिंह अहलूवालिया आदि लेटरल एंट्री के जरिये ही उच्च पदों पर आए। इसी तरह अनेक राजदूत भी गैर-आइएफएस नियुक्त किए गए। प्रशासन के साथ शासन में भी अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ लोगों की सेवाएं ली...
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